आत्मनिर्भर बन जायेगा इंसान

वक़्त है, काट ले ऐ मुसाफिर
घर भी पहुँचना है आगेे..!!

आज हार लीजिये ये दाँव जनाबेआली
ज़िंदगी की बाज़ी तो जीतनी है आगे..!!

काली घटा को भी तो हटना है
सितारों का  एक खूबसूरत जहाँ है आगेे..!!

आज आँसु भी आएँगे और दिल भी टुटेंगे
क्युंकि पत्थर दिल बनना है  तुझे आगे..!!

दुनिया खामोश सी हो चली है आज
होने वाला हंगामा है आगे..!!

इरादे तो आँधियों के भी मजबूत होते हैं
पर इस दिये को जलते रहना है आगेे..!!

करा लीजिये गुलामी जी भर के आज
आत्मनिर्भर बन जायेगा ये इंसान  आगे..!!

-Tiलक

फिर कहोगे नाम बदनाम कर गए

झूठ वाले कहाँ से कहाँ बढ़ गये

एक हम थे कि सच बोलते रह गये

लाख  बचाइ नज़र मुद्दतों

आज अचानक ही मिल गये

रेत पे लिखे थे किस्से हमनें

बेरुख़ वो हवा के झोके मिटा गये

हम तो जैसे तैसे काट लिये

मोती तुम्हारी आंखों से क्यूँ छलक गए

मत पूछिए हिज्र के किस्से

अब लोगो के सामने

फिर कहोगे नाम बदनाम कर गए

फिर कहोगे नाम बदनाम कर गए

Tiलक

दर्द अकेले हम क्यु सहें

तुम्हारे शहर मे नफरतों के तीर चलते रहे
और हम कलम की सियाही से शहद का काम लेते रहे..!!

चले तो जाते सड़क की सीध मे
तुम ही अपने शहर मे ठहरने को कहते रहे…!!

पतंगे उड़ाने का ना  तो तजुर्बा था और ना थी चाह
तुम ही बार बार मांझा हाथों मे थमाते रहे …!!

अब जो कट गई है ये मंझे की डोर

तो दर्द अकेले हम क्यों साहें
तो दर्द अकेले हम क्यूँ सहें..!!

-Tiलक

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